Uttarakhand Breaking: आज, मंगलवार को उत्तराखंड की महिलाओं के आरक्षण विधेयक को राज्यपाल की स्वीकृति मिल गई है। राजभवन की मंजूरी के साथ ही महिला अभ्यर्थियों को सरकारी पदों में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का कानूनी अधिाकर भी मिल गया है। इस बिल को राज्य सरकार ने बीते 30 नवंबर को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित करवाने के बाद राजभवन भेजा था। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में पारित 14 बिलों, जिसमें से अधिकतर संशोधित विधेयक थे।उन्हीं में से एक महिला क्षैतिज आरक्षण बिल को भी राज्यपाल की मंजूरी मिलनी थी। राजभवन में मंजूरी के लिए भेजे गए 14 विधेयकों में से 12 को मंजूरी मिल चुकी है।
विधेयक 1 माह तक रहा विचाराधीन :
राजभवन में अधिकतर विधेयकों को मंजूरी मिल गई थी, लेकिन महिला क्षैतिज आरक्षण बिल काफी समय तक विचाराधीन रहा। राजभवन ने विधेयक को मंजूरी देने से पहले इसका न्याय और विधि विशेषज्ञों से परीक्षण कराया। जिसकी वजह से विधेयक को मंजूरी मिलने में करीब एक महीने का समय लगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले दिनों महिला क्षैतिज आरक्षण कानून के जल्द लागू होने के संकेत दिए थे। राजभवन के सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल की मंजूरी के साथ विधेयक विधायी विभाग को भेज दिया गया है।
इस आरक्षण को लेकर कब क्या हुआ ?
- 18 जुलाई 2001 को अंतरिम सरकार ने 20% आरक्षण का शासनादेश जारी किया था।
- 24 जुलाई 2006 को तत्कालीन तिवारी सरकार ने इसे 20% से बढ़ाकर 30 % कर दिया।
- 26 अगस्त 2022 को उच्च न्यायाल ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आरक्षण के शासनादेश पर रोक लगाई।
- 04 नवंबर 2022 को सरकार की SLP की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई।
- 29 नवंबर 2022 को सरकार ने विधानसभा के समक्ष विधेयक पेश किया।
- 30 नवंबर 2022 को सरकार ने विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करवाकर राजभवन भेजा।
- 10 जनवरी 2022 को राज्यपाल ने विधेयक की स्वीकृति दे दी।
ND तिवारी सरकार ने क्या आदेश दिया था ?
प्रदेश सरकार की नौकरियों में उत्तराखंड की महिलाओं को 30% क्षैतिज आरक्षण के लिए कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार ने 24 जुलाई 2006 को आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। इस पर हाई कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ताओं के वकील की ओर से कहा गया था कि राज्य सरकार के पास राज्य के निवास स्थान पर आधारित आरक्षण प्रदान करने की शक्ति नहीं है। भारत के संविधान केवल संसद को अधिवास के आधार पर आरक्षण देने की अनुमति देता है। राज्य सरकार का साल 2006 का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 का उल्लंघन करता है।
दो विचाराधीन विधेयक :
राजभवन को 14 विधेयकों में से महिला आरक्षण समेत 12 को मंजूरी मिल गई है। जबकि दो विधेयक अभी भी राजभवन में विचाराधीन है। इसमें से एक है, भारतीय स्टांप उत्तराखंड संशोधन विधेयक एवं दूसरा हरिद्वार विश्वविद्यालय विधेयक जिन्हें राज्यपाल की मंजूरी मिल सकी है।
आपको बता दें कि लोकसेवा (महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण) विधेयक 2022 के तहत राज्य में महिलाओं को सरकारी सेवाओं में 20% से 30% क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। यह प्रावधान उन महिलाओं के लिए है, जो राज्य गठन के दौरान तत्कालीन सरकार ने 20 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण शुरू किया था।
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