UP Nikay Chunav: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को ‘UP Nikay Chunav‘ चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को लेकर बड़ा निर्णय दे दिया है। कोर्ट ने ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराने का आदेश दिया है। इससे पहले हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान ही अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था। जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख मंगलवार तय की थी। कोर्ट ने सुनवाई चलतते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। कोर्ट के आदेशअ दिया है कि जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो तब तक OBC आरक्षण नहीं होगा।
क्या है हाईकोर्ट का आदेश ?
इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा,”जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो तब तक अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण नहीं दिया जाएगा।” कोर्ट ने बिना OBC आरक्षण के ही तत्काल चुनाव कराने का निर्देश जारी किया। इस मामले में याची पक्ष ने कहा कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। जिसका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में OBC आरक्षण तय किए जाने से पहले सर्वोच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था कि तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
क्या है ट्रिपल टेस्ट ?
उप्र नगर निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा। इसके पश्चात अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा OBC की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा। इसके बाद तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा।
कैसे होता है रैपिड सर्वे ?
रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्ड वाइज OBC वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के लिए सीटों का निर्धारण करके आरक्षण का प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेजा जाता है।
इस मामले पर राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा था कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। इसके साथ ही सरकार ने ये भाी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने सरकार से पूंछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है इस पर सरकार ने जवाब में कहा था कि हाईकोर्ट के 5 दिसंबर 2011 के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
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