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Supreme Court : विविहित/अविवाहित सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, मैरिटल रेप को माना आधार

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Supreme Court :  सर्वोच्‍चतम न्‍यायालय ने आज देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया है। फिर चाहे वो विवाहित हो , अविवाहित हो, विधवा हो या तलाकशुदा महिला हो । इस ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि Medical Termination of Pregnancy (MTP) Act के तहत 24 सप्‍ताह में गर्भपात का अधिकार सभी को है। इस अधिकार में महिला के विवाहित अथवा अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता।

गर्भपात कानून पर Supreme Court ने कहा,  किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसके अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। एकल या अविवाहित महिलाओं को भी गर्भावस्‍था  के 24 सप्‍ताह में उक्‍त कानून के तहत गर्भपात का अधिकार है।

दुष्‍कर्म में ‘मैरिटल रेप’ भी शामिल

सर्वोच्‍चतम न्‍यायानल गर्भपात को लेकर आज (गुरूवार) को सुनाए गए अहम फैसले में कहा है कि पति द्वारा किया जाने वाला दुष्‍कर्म ‘मैरिटल रेप’ की दशा में भी 24 सप्‍ताह की तय सीमा में पत्‍नी गर्भपात करा सकती है।  Medical Termination of Pregnancy ( MTP) Act के तहत इसे यह अधिकार दिया जाता है। यह अधिकार उन महिलाओं के लिए राहतकारी होगा, जिन्‍हें अनचाहे गर्भ को धारण के लिए विवश किया जाता है।

Supreme Court ने MTP एक्‍ट की व्‍याख्‍या की

जस्टिस D.Y. चंद्रचूर्ण की अध्‍यक्षता वाली तीन न्‍यायाधीशों की पीठ ने उक्‍त कानून में वैवाहिक बलात्‍कार ‘मैरिटल रेप’ को भी शामिल माना है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में MTP एक्‍ट की व्‍याख्‍या करते हुए यह अधिकार दिया है। बेंच ने कहा उक्‍त कानून के उद्देश्‍यों को देखते हुए विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर कृत्रिम है और इसे संवैधानिक रूप से कायम नहीं रखा जा सकता।  यह उस रूढि़वादिता को कायम रखने वाला है कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन संबंधों में लिप्‍त होती हैं।

साल 2021 में संशोधन कर पति की जगह ‘पार्टनर’ शब्‍द का उपयोग किया

शीर्ष अदालत ने यह भी नोट किया कि 2021 में MTP एक्‍ट के संशोधन में अविवाहित महिला को भी शामिल करने के लिए पति की जगह पर पार्टनर शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया था। अदालत ने कहा कि संसदीय मंशा वैवाहिक संबंधों से उत्‍पन्‍न स्थितियों के लाभों को सीमित करने की नहीं थी। वास्‍तव में यह एक विधवा अथवा तलाकशुदा महिला को 20-24 सप्‍ताह के गर्भपात की अनुमति है।

अविवाहित महिलाओं को वंचित रखना समानता के अधिकार का उल्‍लंघन

यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस D.Y. चंद्रचूर्ण की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि उक्‍त कानून के नियम 3 बी के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करना अनुचित है। क्‍योंकि यह संविधान के अनुच्‍छेद-14 के तहत समानता के मूल अधिकार का उल्‍लंघन है। अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात से रोकना और सिर्फ विवाहित महिलाओं को अनुमति देना संविधान में दिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का उल्‍लंंघन व हनन है।

25 वर्षीय युवती की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला

सर्वोच्‍चतम न्‍यायालय ने महिलाओं के अधिकारों की दिशा  में यह ऐतिहासिक फैसला 25 वर्षीय एक अविवाहित युवती की याचिका पर सुनाया है। जिसने कोर्ट से 24 सप्‍ताह के गर्भ को गिराने की अनु‍मति मांगी थी। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने उसे अनुमति नहीं दी थी क्‍योंकि युवती सहमति से यौन संबंध के दौरान गर्भवती हुई थी। इसके बाद युवती ने Supreme Court में याचिका दायर की और कहा कि, वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता किसान हैं, उसके पास आजीविका चलाने के इंतजाम नहीं हैं। इसलिए वह पेट में पल रहे बच्चे का पालन-पोषण करने में असमर्थ रहेगी।  दिल्‍ली हाईकोर्ट ने 16 जुलाई के फैसले में युवती को 24 सप्‍ताह के गर्भपात की इजाजत इसलिए नहीं दी थी कि वह सहमति से बनाए गए संबंध की देन था।

 

Kusum
I am a Hindi content writer.

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