Supreme Court: सर्वोच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीयश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस नरसिम्हा की बेंच ने कहा- ”न्यायिक समीक्षा के मानदंड संवैधानिक अदालतों को नामांकन शुल्क में में छूट देने जैसे आदेश पारित करने की अनुमति नहीं देते”। दरअसल, Supreme Court ने आज एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में ट्रांसजेंटर वकीलों के लिए उस नामांकन शुल्क को माफ करने की मांग की गई थी जो वैधानिक बार निकायों के द्वारा लिया जाता है। शीर्ष कोर्ट ने यह हवाला देते याचिका खारिज की हैं, कि ऐसे मुद्दे न्यायिक समीक्षा के मापदंड़ों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
ट्रांसजेंडर वकीलों हेतु शुल्क माफी याचिका :
सुप्रीम कोर्ट के CJI ने पूंछा, आप यह नहीं कह सकते कि सिर्फ आपके ही नामांकन शुल्क न लिया जाए। केवल ट्रांसजेंडर व्यक्ति ही क्यो, इसे विकलांगों, महिलाओं और हाशिए पर खड़े व्यक्तियों तक क्यों न बढ़ाया जाए। आपको न्यायिक समीक्षा के मापदंडों को समझना होगा। बेंच ने पूछा, सिर्फ कानूनी पेशे में ही इस तरह की शुल्क माफी क्यो इस तरह की शुल्क माफी को चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में बढ़ाया जाना चाहिए। इसके बाद Supreme Court ने कहा वह इस याचिका को खारिज कर रहा है।
सर्वोच्चतम न्यायालय के CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के मानदंड संवैधानिक अदालतों को नामांकन शुल्क में छूट जैसे आदेश पारित करने की अनुमति नहीं है। इसके बाद याचिकाकर्ता एम करपगम के वकील ने याचिका को वापस लेने का फैसला किया। Supreme Court ने करपगम को इस आशय को एक प्रतिनिधित्व बार काउंसिल ऑफ इंडिया को देने की अनुमति दी।
ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण याचिका :
आपको बता दें कि, मार्च 2021 में ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षण की अपील वाली याचिका पर भी शीर्ष अदालत ने सुनवाई की थी। जिसमें उन्होंने, ट्रांसजेडर्स को रोजगार के समान अवसर उपलब्ध कराने और उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना सुनिश्चित किया था। इस याचिका पर सहमति जातते हुए, Supreme Court ने ट्रांसजेंडर को सामाजिक व शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ा नागरिक माना था। और उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले व सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण प्रदान करने के निर्देश दिए थे।
यह याचिका वकील रीपक कंसल और अन्य के द्वारा दायर की गई थी। जिसकी सुनवाई CJI बोबड़े एवं न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने की थी। इस याचिका में खुफिया ब्यूरो में सहायक केंद्रीय खुफिया अधिकारी के 2,000 पदोंं पर निकाली भर्ती अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। जारी अधिसूचना में, भारतीय पुरूष और महिला नागरिाकों को ही आवदेन करने की अनुमति थी। इसमें कहा गया था कि यह ट्रांसजैंडर के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है।
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