Pak-Afghanistan: अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान के बदलते रूख पर तालिबान सरकार पैनी नजर रख रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले वर्ष तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद पाकिस्तान ने जो दोस्ताना रूख दिखाया था, वह दौर गुजर चुका है। अब पाकिस्तान अफगानिस्तान में अड्डा बनाए आतंकवादी संगठनों को नियंत्रित करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है। इसके साथ ही वह अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को रोकने की कोशिश में जुटा हुआ है। जिसके चलते Pak-Afghanistan के बीच रिश्तों में कड़वाहट लगातार बढ़ रही है।
क्या है पाकिस्तान की शिकायत ?
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, अफगानिस्तान में अपना प्रभाव रखना अपने विदेशी नीति मकसदों के लिहाज से पाकिस्तान को बेहद अहम मालूम पड़ता है। जबकि मौजूदा तालिबान सरकार लगातार उसे अहसास करा रही है कि वह 1990 के दशक जैसी तालिबानी सरकार नहीं है।
विश्लेष्कों का कहना हैकि, पाकिस्तान की शिकायत यह हैकि तालिबानी सरकार उसकी चिंताओं को बढ़ा रही है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में 56 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। अफगानिस्तान में अल-कायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और इस्लामिक स्टेट खोरासान (ISIS-K) के अड्डे पहले की तरह मौजूद हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि यही गुट ही सीमा पार से पाक में हमल कर रहे हैं। खासकर TTP का निशाना पाकिस्तान बना दिया है।
Pak-Afghanistan रिश्तों में दरार क्यों ?
पर्यवेक्षको ने ध्यान दियाला है कि इस वर्ष सितंबर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए अफगानिस्तान की आलोचना की थी। उन्होंने संबोधन में कहा था कि अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी गुटों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता से पाकिस्तान सहमत है। पाकिस्तान के उस भाषण से तालिबान में गहरी नाराजगी देखी गई थी। उधर पाकिस्तानी टीकाकारों ने कहा है कि तालिबान स्वायत्त विदेश नीति अपनाने की कोशिश में लगा हुआ है। जिससे पाकिस्तान के हितों को चोट पहुंच सकती है।
यह 1990 की तालिबानी सरकार नहीं :
इस्लामाबाद स्थित national university of sciences and technology में समाज विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर ‘अहमद वकास’ ने वेबसाइट एशिय टाइम्स पर छपी एक टिप्पणी में लिखा- ‘तालिबान भारत से अनुरोध कर रहा है कि वह द्विपक्षीय व्यापार और मानवीय सहायता फिर शुरू कर अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को बढ़ाए’। तालिबान ने अफगान बलों के प्रशिक्षण में भारत की सहायता लेने में दिलचस्पी दिखाई है।
तालिबान ने भारत की ईरान में चाबाहार बंदरगाह परियोजना का सर्मथन किया है। जबकि यह परियोजना पाकिस्तान के ग्वादार बंदरगाह के मुकाबले विकसित की गई है। अहमद वकास ने लिखा है कि, यह भी इस बात की मिशाल है कि तालिबान पाकिस्तान के हितों की अनदेखी कर रहा है।
पर्यवेक्षकों के अनुसार, अफगानिस्तान में अपना प्रभाव अपने विदेश नीति के मकसदों के लिहाज से पाकिस्तान को बेहद मालूम पड़ता है। जबकि अफगानिस्तान की मौजूदा तालिबानी सरकार उसे यह एहसास करा रही है कि वह 1990 के दशक जैसी तालिबान सरकार नहीं है। उस समय यह धारणा बनी हुई थी कि तालिबान सरकार के सूत्र पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के हाथ में हैं।
Comments