Nepal news: नेपाल के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल अगले सप्ताह प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हासित करेंगे। हालांकि, उनकी सरकार को 275 सदस्यीय सदन में से करीब 170 सदस्यों का सर्मथन हासिल है। इसके बावजूद, उन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (Unified Socialist) का समर्थन हासिल करने के लिए पार्टी प्रमुख माधव कुमार नेपाल से बातचीत की है। माना जा रहा है कि, दहल एक बार फिर से सभी कम्युनिस्ट गुटों को एक मंच पर लाना चाहते हैं। कूटनीतिक हलकों के अलावा मीडिया में भी इस बात की चर्चा है कि, भारत-नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में फिर से सरकार का गठन चाहता था।
प्रधानमंत्री दहल ने कहा ?
जहां एक ओर अनुमान लगाया जा रहा है कि,नई सरकार चीन के साथ रिश्तों को अधिक मजबूत बनाएगी। ऐसे में सपकोटा ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा, ”दहल ने कहा कि उनकी सरकार सुशासन को प्राथमिकता देगी। देश इस समय जैसे आर्थिक संकट में है, उसके बीच संभावना यही है कि ये सरकार चीन के साथ मजबूत संबंध बनाएगी।” पुष्प दहल ने 26 दिसंबर को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। ऐसा माना जा रहा है कि, उन्हें प्रधानमंत्री बनवाने के लिए चीन ने परदे के पीछे से कूटनीति की है। विश्लेष्कों ने ध्यान दिलाया है कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने कार्यकाल में चीन के साथ नेपाल के संबंधों को गहराई दी थी। मौजूदा सरकार भी ओली की ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के समर्थन पर टिकी हुई है।
दहल के सामने अंतर्राष्ट्रीय होड़ में संतुलन बनाने की चुनौती :
नेपाल में एक बार फिर कम्युनिस्ट बहुल सरकार बनने के बाद यहां इस घटनाक्रम के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों को लेकर अनुमान लगाए जा रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि, दहल के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात को लेकर है कि वे अमेरिका और चीन की चल रही होड़ के बीच किस तरह का संतुलन बना पाते हैं। इसके साथ ही भारत और और चीन के बीच संतुलन बनाने की कठिन चुनौती भी उनके सामने है। थिंक टैंक इंस्टीट्यूज ऑफ फॉरेन अफेयर्स के पूर्व निदेशक रूपक सपकोटा ने कहा है कि, नई सरकार चीन के साथ घनिष्ठता का संबंध बनाएगी। हालांकि, बाकी देशों के साथ भी वह संतुलन बनाकर चलेगी।
दहल के सामने अमेरिकी MCC करार को लागू करने की जिम्मेदारी :
नई सरकार पर अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) के साथ हुए करार को लागू करने की जिम्मेदारी भी है। बीते वर्ष लागू हुए इस समझौते के तहत MCC नेपाल को 50 करोड़ डॉलर की सहायता देगी। इस राशिको ट्रांसमिशन लाइन एवं सड़कों के निर्माण पर खर्च किया जाना है। पिछली देउबा सरकार ने इस समझौते को संसदीय मंजूरी दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। जिसमें दहल ने भी देउबा का भरपूर सहायता की थी।
जानकारों का कहना है कि, एक तरफ चीन के साथ संबंध बढ़ाना और दूसरी तरफ अमेरिकी सहायता से बनने वाली परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण होगा। अंतराष्ट्रीय मामलों के जानकार और लेखक संजय उपाध्याय ने कहा, ‘नेपाल को अपने मित्र देशों को यह बता देना चाहिए कि उसका हित उन देशों की प्रतिस्पर्धा से अलग रहने में है। लेकिन क्या नया ढीला-ढाला सत्ताधारी गठबंधन यह काम कर पाएगा, यह एक बड़ा सवाल है।’
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