Mahaparinirvan Diwas 2022: प्रत्येक वर्ष 06 दिसंबर को संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनकी पुण्यतिथि पर ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ मनाया जाता है। भारत रत्न ‘बाबा साहेब’ अम्बेडकर को ‘भारतीय संविधान के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है। डॉ. अम्बेड़कर एक समाज सुधारक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, लेखक, मुखर वक्ता, बहुभाषाविद, धर्मों के विचारक और महान विद्वान थे। आज उनकी 67वीं पुण्यतिथि को ‘ Mahaparinirvan Diwas‘ के रूप में मनाया जा रहा है। क्योंकि आज ही के दिन 06 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हुई थी। जिसके बाद बौध्द सिध्दांतों के अनुसार उनका अंतिम संस्कार’चैत्या भूमि’ स्थल में किया गया।
क्या है महापरिनिर्वाण ?
परिनिर्वाण का अर्थ है ‘मृत्यु के पश्चात निर्वाण‘अर्थात् मौत के बाद निर्वाण। बौध्द धर्म के कई सिध्दांतों में से परिनिर्वाण भी एक सिध्दांत है। इसके अनुसार, जो व्यक्ति निर्वाण करता है वह सांसारिक आडंबरों (मोह, माया, लोभ, क्रोध, इच्छा) से मुक्त हो जाता है। इसके साथ ही वह इस जीवन चक्र से भी मुक्त हो जाता है। निर्वाण हासिक करना बहुत मुश्किल होता है, इसके लिए सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन व्यतीत करना पड़ता है। बौध्द धर्म में भगवन बुध्द के निधन को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
महापिरिनिर्वाण का महत्व क्या है ?
महानायक डॉ. अम्बेड़कर का भारतीय इतिहास में अहम योगदान है। उन्होंने दलित और शोषित वर्गों की स्थिति में सुधार लाने में, समाज में व्याप्त छूआछूत समेंत कई कुप्रथाओं को खत्म करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बौध्द धर्म के अनुयायियों का मानना है कि उनके गुरू बुध्द की तरह अम्बेडकर भी सदाचारी थे। उनका मानना है कि बाबासाहेब अपने कार्यों से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। इसलिए उनकी पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है।
आपको बता दें कि, डॉ. अम्बेड़कर सभी धर्मों का विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सबसे अच्छा और मानवतावादी धर्म ‘बौध्द धर्म‘ है। इसलिए उन्होंने लाखों लोगों सहित 14 अक्टूबर 1956 को बौध्द धर्म अपनाया। निधन के पश्चात् उनका अंतिम संस्कार भी बौध्द धर्म के नियमानुसार ही किया गया था। मुंबई के दादर चौपाटी में जिस जगह उनक अतिम संस्कार हुआ था, अब उसे ‘चैत्या भूमि’ के रूप में जाना जाता है।
Mahaparinirvan Diwas कैसे मनाते हैं ?
संविधान निर्माता डॉ. अंबेड़कर को अपना आदर्श मानने वाले उनकी पुण्यतिथि पर, उनकी प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाते हैं। उसके बाद दीपक अथवा मोमबत्तियां जलाते हैं। इसके बाद उनको अपना आदर्श मानने वाले लोग आज उनके कार्यों को आगे बढ़ाने, समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने की प्रतिज्ञा लेकर वास्तविक श्रृध्दांजलि अर्पित करते हैं। इस मौके श्रध्दांजलि देने के लिए ‘चैत्या भूमि’ पर भी लोगों की भीड़ उमड़ती है। लोग ‘बाबासाहेब अमर रहें’ के नारे लगाते हैं, वहीं बौध्द भिक्षु समेत कई लोग पवित्र गीत गाते हैं। ऐसे ही उनकी पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण‘ के रूप में मनाया जाता है।
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