Living Planet Report 2022: हाल ही में जारी विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की Living Planet Report के मुताबिक, 1970 के मुकाबले आज 69 प्रतिशत वन्यजीव खत्म हो चुके हैं। इनमें स्तनधारी, मछलियां, पक्षी, सरीसृप, उभयचर सभी शामिल हैं। इन 50 सालों की अवधि में ताजे पानी में रहने वाले जीवों में तो 83 फीसदी आबादी खत्म हो चुकी है। भारत में 12 फीसदी स्तनधारी वन्यजीव समाप्ति की कगार पर हैं। इस लिविंग प्लानेट रिपोर्ट 2022 में 90 वैज्ञानिकों ने 32,000 से ज्यादा जीवों की प्रजातियों का विश्लेषण किया है। जबकि पिछली बार 21,000 जीव प्रजातियों का विश्लेषण किया गया था। WWF भारत के महासचिव व सीईओ रवि सिंह ने बताया, इस द्विवार्षिक रिपोर्ट में 838 प्रजातियां नई हैं।
WWF रिपोर्ट ने किया दावा
पृथ्वी का हेल्थ चेकअप कही जाने वाली इस रिपोर्ट में आकलन किया जाता है कि मानव आबादी के दबाव और औद्योगिक गतिविधियों एवं जंगलों के खात्में से जीवों को क्या नुकसान हो रहा है। इसी WWF की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 1970 के मुकाबले आज 69 फीसदी वन्यजीव प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं। और बहुत सारी खत्म होने के कगार में हैं। WWF इंटरनेशनल के मार्को लेंबर्टिनी के मुताबिक आज पृथ्वी जलवायु परिवर्तन व जैव-विविधता के खात्में के ‘दोहरे आपातकाल’ संकट से गुजर रहा है। जिसका खामियाजा आने वाली ‘भावी’ पीढि़यों को भुगतना होगा।
क्या हैं भारत के हालात ?
भारत के दक्षिण में स्थित वर्षा वनों में सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव नजर आ रहा है। हिमालय और इससे जुड़े जंगलों पर भी इसका बुरा असर नजर आ रहा है। इन क्षेत्रों को रिपोर्ट ने एक नक्शे में लाल तथा पराबैग94नी रंगों में दर्शाया है। 2021 में जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा नुकसान वाले देशों में से भारत 7वें नंबर पर है। भारत में पिछले 25 सालों में 40% मधुमक्खियां खत्म हो चुकी हैं। भारत में 146 पक्षी प्रजातियां निकट भविष्य में पूरी तरह खत्म हो जाएंंगी। साल 1985 के मुकाबले सुंदरवन का 137 वर्ग किमी. का इलाका खत्म हो चुका है। 1930 तक 45% से 64% जंगल जलवायु परिवर्तन, बारिश, सूखे से नुकसान सह रहे होंगे।
क्या दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ये गिरावटअलग-अलग है ?
लेटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। अफ्रीका में 66%, एशिया और पैसेफिक इलाके में 55%, उत्ती अमेरिका में 20%, यूरोप और मध्य एशिया में 18% की गिरावट दर्ज की गई है। इस रिपार्ट में बिना राढ़ वाले जीवों मतलब इन्वर्टीब्रेट्स को शामिल नहीं किया गया है। इन्वर्टीब्रेट्स में जेलीफिश, कोरल, घोंघे, केकड़े, झींगा मछली, ऑक्टोपस, बीटल और तितलियां आदि जैसे जीव आते हैं। आज धरती की 70 प्रतिशत और ताजे पानी की 50 प्रतिशत जैव-विविधता खतरे में है। प्राकृतिक जल स्त्रोतों से 3 में से 1 मछलियां इतनी अधिक मात्रा में पकड़ी जा रही हैंकि उनकी आबादी पहले के स्तर पर नहीं बढ़ पा रही है।
कौन-सी गतिविधियां बनी जीवों के मौत का कारण ?
भारत में डब्लूडब्लूएफ की अधिकारी सेजल वोरा ने बताया कि मानव की 6 गतिविधियों से वन्य जीवों को बड़ा नुकसान हो रहा है। मानवीय गतिविधियों में जलवायु परिवर्तन, शिकार, खेती, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण और कमजोर पर्यावरण में खतरनाक जीवों की प्रजातियों को बसाना शामिल है। साल 1980 के मुकाबले समुद्र में प्लास्टिक 10 गुना बढ़ा है, जिससे 86 प्रतिशत समुद्री कछुओं सहित कई जीवों पर संकट है। 95 प्रतिशत व्हाइट टिप शार्क खत्म हो चुकी है, वहीं रे व अन्य शार्क की आबदी में 71 प्रतिशत की गिरावट हुई। 90 प्रतिशत वेटलैंड पूरी तरह खत्म हो चुके हैं, हर 2 सेकंड में फुटबॉल के एक मैदान के बराबर जंगल काटा जा रहा है।
4 डिग्री बढ़ा तापमान तो 75 फीसदी प्रजातियां होंगी खत्म
यदि वर्तमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से ये हालात है तो सोचिए कैसा होगा भावी पीढि़यों का भविष्य। विशेषज्ञों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान किसी भी हालत में 1.5 से ज्यादा नहीं जाना चाहिए। डब्लूडब्लूएफ Living Planet Report में दावा किया है कि 18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति से पहले के मुकाबले औसत तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तो 75 प्रतिशत जीव हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। 1 डिग्री तापमान में वृध्दि से 25 प्रतिशत जीव, 2 डिग्री वृध्दि पर 25-50 प्रतिशत और 3 डिग्री वृध्दि से 75 प्रतिशत जीव खत्म हो जाएंगे।
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