खबरें

Kedarnath Avalanche: केदारनाथ में भयानक एवलांच से बढ़ने लगी वैज्ञानिकों की चिंता, जानें …

0
Kedarnath Avalanche jpeg

Kedarnath Avalanche: उत्‍तराखंड में एक बार फिर से  Kedarnath Avalanche की घटना सामने आई है। जो केदारनाथ धाम के ठीक ऊपर घटित हुई है।  यह केदारनाथ धाम में एक महीने के ही अंदर ऐसी तीसरी घटना है। जिसने प्रशासन और वाडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी है। उच्‍च हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्‍खलन की घटनाएं सितंबर-अक्‍टूबर में ही होने से वैज्ञानिक चिंतित हैं। मौसम विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार, एवलांच को हिमस्‍खलन अथवा बर्फीला तूफान भी कहा जाता है।

वैसे तो यह घटना आम है लेकिन जलवायु परिर्वन के चलते भविष्‍य के लिए यह भयानक साबित हो सकती है।  हाल ही में शनिवार को हुए हिमस्‍खलन को लेकर वाडिया इंस्‍टीट्यूट के 2 वैज्ञानिक विनीत कुमार और मनीष मेहता की टीमें आज केदारनाथ अध्‍ययन के लिए जाएंगी।

क्‍या बोले वाडिया निदेशक ‘डॉ. सांई’ ?

वाडिया इंस्‍टीट्यूट के निदेशक डॉ. कालाचॉद सांई ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के चलते जहां गर्मी और बारिश में बदलाव देखने को मिल रहा है, वहीं उच्‍च हिमाचयी क्षेत्रों में सितंबर-अक्‍टूबर माह में ही बर्फबारी होने से एवलांच जैसी घटनाएं हो रही हैं। उन्‍होने बताया कि, फिलहाल उच्‍च हिमालयी क्षेत्रों में सितंबर-अक्टूबर में हो रही बर्फवारी गलेशियर्स की सेहत के लिए तो ठीक है, लेकिन हिमस्‍खलन की घटनाएं काफी चिंताजनक हैं। उन्‍होंने कहा, हाल ही में जो घटनाएं हुई हैं उनकों लेकर ज्‍यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। क्‍योंकि उच्‍च हिमालयी क्षेत्रों में अभी इतनी ज्‍यादा बर्फबारी नहीं हुई है कि भारी हिमस्‍खलन के साथ ही ग्‍लेशियरों के टूटने जैसी घटनाएं हों।

तीव्र ढ़लानों वाले क्षेत्रों में हिमस्‍खलन की अधिक संभावनाएं :

वाडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. सांई ने बताया कि जिन क्षेत्रों में हिमस्‍खलन की घटनाएं अधिक हुई हैं वे तीव्र ढ़लान वाले उच्‍च हिमालयी क्षेत्र हैं। जिससे गुरूत्‍वाकर्षण बल के कारण ग्‍लेशियर्स पर गिरने वाली बर्फ तेजी से नीचे खिसक रही है। फिर भी सितंबर-अक्‍टूबर में हिमस्‍खलन की घटनाएं क्‍यों हो रही हैं  इसके विस्‍तृत अध्‍ययन के लिए संस्‍थान के विशेषज्ञों की टीमें भेजी जा रही हैं।

तीव्र ढ़लानों वाले कुछ बेहद संवेदनशील इलाके:

वाडिया इंस्‍टीट्यूट के वैज्ञानिकों  के अनुसार, लद्दाख क्षेत्र में कारगिल की पहाडि़यां, गुरेज घाटी, हिमाचल की चंबा घाटी, कुल्‍लू घाटी, किन्‍नौर घाटी के अलावा उत्‍तराखंड की चमोली और रूद्रप्रयाग के उच्‍च हिमालयी और तीव्र ढ़लानों वाले क्षेत्र हिमस्‍खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। यहां पूर्व में हिमस्‍खलन की भीषण घटनाएं हो चुकी हैं। अब जयवायु परिर्वन एवं ग्‍लोबल वार्मिग जैसी परिस्थितियों के चलते ऐसी घटना भविष्‍य में बड़े खतरे का इशारा है। पर्यावरणविद इसे भविष्‍य के लिए अशुभ संकेत मान रहे हैं।

हिमस्‍खन की तीन श्रेणियां:

खतरों के लिहाज से हिमस्‍खलन को तीन श्रेणियों  रेड जोन, ब्‍लू जोन, यलो जोन में बांटा गया है। जहां  हिमस्‍खलन में बर्फ का प्रभावी दबाव 3 टन/वर्गमीटर से ज्‍यादा होता है रेड जोन कहलाता है। इतनी अधिक मात्रा में बर्फ के तीव्र गति से नीचे खिसकने से भारी तबाही होती है। जहां बर्फ का प्रभावी दबाव रेड जोन से कम होता होता है उसे ब्‍लू जोन कहते है। यह रेड जोन से थोड़ा कम खतरनाक होता है। तीसरा है यलो जोन, दरासल इन क्षेत्रों में हिमस्‍खलन की घटनाएं बे‍हद कम होती है। इससे जानमाल के नुकसान की संभावना कम होती है।

पूर्व हिमस्‍खलन की कुछ प्रमुख घटनाएं

6 मार्च 1979     –  जम्‍मू-कश्‍मीर में हुई भीषण तबाही में 237 लोगों की मौत।

5 मार्च 1988     –  जम्‍मू-कश्‍मीर में 70 लोगों की मौत।

3 सितंबर 1995  –  हिमाचल प्रदेश में हिमस्‍खलन से नदी में बाढ़ जैसी स्थितियां बन गईं।

2 फरवरी 2005  – जम्‍मू-कश्‍मीर में हिमस्‍खलन से 278 लोगों की मौत।

1 फरवरी 2016   – सियाचिन क्षेत्र में हिमस्‍खलन से 10 भारतीय जवानों की मौत।

7 फरवरी 2021   – चमोली के रैणी में हिमस्‍खलन से 206 लोगों की मौत।

हालांकि शनिवार को हुई इस ‘Kedarnath Avalanche’ घटना से किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी NDRF, SDRF, DDRF और पुलिस बल टीम के साथ ही यात्रा में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों को सचेत रहने को कहा गया है। वर्तमान में स्थिति सामान्य है एवं यात्रा सुचारू रूप से संचालित हो रही है।

 

 

 

 

 

Kusum
I am a Hindi content writer.

Comments

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *