Jhalkari Bai Jayanti 2022: अंग्रेजों की प्रताड़ना के खिलाफ और आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता संग्राम का आगाज 1857 की क्रांति से हो गया था। 1857 की क्रांति को भारत के इतिहास के स्वर्ण पन्नों में दर्ज किया गया है। इस महान क्रांति में झांसी की रानी और मंगल पांडे जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। जिनकी शौर्य गाथाएं बच्चों को कहानियों के रूप में सुनाई जाती हैं। कैसे कोई महिला अपने राज्य और गोद लिए बच्चे की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया। वह महिला झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थीं। लेकिन झांसी की रानी इस आंदोलन में अकेली नहीं थीं, एक महिला सेनापति ‘Jhalkari Bai’ भी उनके साथ कदम-से -कदम मिलाकर चल रही थीं।
स्वतंत्रता संग्राम में अपनी मुख्य भूमिका निभाने वाली ‘झलकारी बाई’ की आज जयंती है। तो चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी और भी बातें...
कैसा था झलकारी बाई का बचपन ?
झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 में बुंदेलखंड के भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनका गांव झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के किले के पास ही था। किले के दक्षिण में उन्नाव गेट था, जहां आज भी झलाकारी बाई के घराने के लोग रहते हैं। झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ थीं। छोटी आयु में ही उनकी मां का देहांत हो गया। पिता ने झलकारी बाई को हथियार और घुड़सवारी करने का प्रशिक्षण दिया।
कैसा था झलकारी बाई का साहस ?
झलकारी घर के काम करती और पशुओं को चराने जंगल भी जाया करती थीं। झलकारी बाई छोंटी ही थी कि एक बार जंगल में लकड़ी काटते समय उनकी मुठभेड एक तेंदुए हुई। तेंदुए ने उनके ऊपर हमला कर दिया, उस वक्त उनके हाथ में कुल्हाड़ी ही थी। झलकारी बाई ने बिना डरे एक कुल्हाड़ी से उस तेंदुए को मार डाला। उनसे जुड़ा एक किस्सा और है, जब उनके घर पर कुछ डकैतों ने हमला बोल दिया था, तब भी झलकारी बाई ने बड़ी सूझ-बूझ से उनका सामना किया और गांव से बाहर खदेड़ दिया था।
कैसा था उनका वैवाहिक जीवन ?
वीरांगना झलकारी बाई का विवाह झांसी की सेना में तैनात एक सैनिक ‘पूरन कोरी’ के साथ हुआ था। उनकी शादी में पूरे गांव वालों ने उनका भरपूर सहयोग दिया था। विवाह के पश्चात वे पूरन के साथ झांसी आ गईं, जहां उनकी मुलाकात एक पूजा के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई से हुई। रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देखते ही दंग रह गईं, क्योंकि वह बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई के जैसी दिखती थीं। जब लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई की वीरता और साहस के किस्से सुने तो उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया। यहां पर लक्ष्मीबाई ने उनको बंदूक चलान, तलवार तथा तोप चलाना सीखा।
लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं झलकारी :
दुर्गा दल की सेनापति ‘Jhalkari Bai’ हूबहू रानी लक्ष्मीबाई के जैसे ही दिखती थीं। इस चमत्कार का फायदा भी उन्होंने 1857 की क्रांति में खूब उठाया। अंग्रजी सैनिकों ने जब झांसी कि किले पर हमला बोला तो सेनापतियों ने रानी लक्ष्मीबाई को किले से निकल जाने की सलाह दी। अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ युध्द में ही झलकारी बाई के पति शहीद हो चुके थे। सभी ने मिलकर अंग्रेजों को चकमा देने की योजना बना डाली। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की वेषभूषा धारण करके सेना की कमान संभाल ली। अंग्रेजों को भनक तक न हो सकी कि वह रानी लक्ष्मीबाई नहीं, बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई है।
वीरांगना झलकारी बाई भी जनरल रोज के कैंप में पहुंच गईं, इस दौरान मौका पाकर रानी वहां से दूर निकल गईं। झलकारी बाई जानती थीं किं वो जहां जा रही है, वहां मौत के सिवाय कोई विकल्प नहीं हैं। लेकिन अपनी मातृभूमि, राज्य, रानी और राजकुमार की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना युध्द में अंतिम सांस तक लड़ीं। वे अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ लड़ते हुए 4 अप्रैल 1857 को वीरगति को प्राप्त हो गईं।
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