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Inflation: RBI के डिप्‍टी गवर्नर ने कहा- लंबी चलेगी महंगाई पर काबू पाने की लड़ाई, लेकिन निश्चित ही नीचे आएंगी कीमतें

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Inflation: हाल ही में RBI के डिप्‍टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा ने Inflation के मुद्दे पर एक बयान में कहा कि, मंहगाई पर काबू पाने की लड़ाई लंबी चलेगी। क्‍योंकि नीति के तहत उठाए गए कदमों का असर दिखने में वक्‍त लगेगा। उन्‍होंने कहा कि यदि हम इसमें सफल हो जाते हैं तो नकारात्‍मक महंगाई से जूझ रही बाकी दुनिया के मुकाबले भारत सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक होगा। पात्रा की अगुवाई वाली समिति ने अर्थव्‍यवस्‍था की हालत पर लिखे लेख में कहा कि, महंगाई के खिलाफ जारी जंग का सुखद  न‍तीजा विदेशी निवेशकों में नया उत्‍साह भरेगा। सितंबर में खुदरा मंहगाई दर बढकर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई।

हरित GDP के लिए बने एक अलग इकाई: पात्रा

वर्तमान में मंहगाई से हर व्‍यक्ति हर देश परेशान है, इसका असर देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर भी नकारात्‍मक प्रभाव पड़ रहा है। इसी बीच आरबीआई के इस बड़े बयान के बाद पात्रा ने कुछ और सुझाव भी दिए है। उन्‍होंने हरित GDP के लिए पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक समर्पित इकाई बनाने का सुझाव दिया। यह इकाई पर्यावरणीय नुकसान, प्राकृतिक संसाधनों में कमी एवं संसाधनों की बचत से जुड़ी गणनाएं कर GDP में उनका समसयोजन करेगा। देश के  सामाजिक व विकास उद्देश्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए वित्‍तीय प्रणाली को हरित वित्‍त पोषण प्रणाली की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है।

जयंत वर्मा ने कहा 5-6 तिमाहियों में दिखेगा असर

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MSP) के सदस्‍य जयंत आर वर्मा ने कहा- Inflation पर कठोर मौद्रिक नीतियों का प्रभाव आने वाली अगली 5-6 तिमाहियों के बाद दिखाई देगा। उन्‍होंने कहा, हमारा महंगाई का लक्ष्‍य 4 प्रतिशत है, जिसमें 2 फीसदी कम अथवा ज्‍यादा का भी विकल्‍प है। और कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि केंद्रीय बैंक के इस कदम  से महंगाई कम होगी। हालांकि, कठोर मोद्रिक नीतियों का असर दिखने में समय लगेगा। निश्चित ही कुछ समय बाद इसका असर दिखेगा और कीमतें भी नीचे आएंगी।

क्‍या है ‘हरित GDP’?

संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, हरित GDP का मतलब जैविक विविधता की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारणों को मापना है।  इस जीडीपी का तात्‍पर्य पारंपरिक सकल घरेलू उत्‍पाद के उन ऑकड़ों से है, जो आर्थिक गतिविधियों में पर्यावरणीय तरीकों को स्‍थापित करते हैं। किसी भी राष्‍ट्र की ग्रीन GDP से तात्‍पर्य है कि वह देश सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए किस हद तक तैयार है। अर्थात् हरित GDP पारंपरिक GDP का प्रति व्‍यक्ति कचरा और कार्बन के उत्‍सर्जन का पैमाना है।

ग्रीन अर्थव्‍यवस्‍था में सार्वजनिक और निजी निवेश करते समय इस बात को ध्‍यान में रखा जाता है कि कार्बन उत्‍सर्जन और प्रदूषण कम से कम हो, ऊर्जा और संसाधनों की प्रभावोत्‍पादकता बढ़े और जो जैव विविधता एवं पर्यावरण प्रणाली की सेवाओं के नुकसान कम करने में मददगार साबित हो।

 

Kusum
I am a Hindi content writer.

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