Forex Reserves: RBI के ताजा आंकडों के मुताबिक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अर्थात् Forex Reserves बीते 21 अक्टूबर को लुढ़क कर दो वर्षों के न्यूनतम स्तर 524.520 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। इसके एक हफ्ते पहले 14 अक्टूबर को विदेशी मुद्रा भंडार 528.367 बिलियन डॉलर था। स्पष्टत: एक हफ्ते के अंदर विदेशी मुद्रा भंडार में 3.85 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। आपको बता दें कि दो वर्ष पहले भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 577 बिलियन डॉलर था। इसके साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में 3.59 बिलियन डॉलर की कमी आई है। यह घटकर 465.075 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है।
देश के स्वर्ण भंडार में आई गिरावट
आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश का स्वर्ण भंडार भी इस दौरान 247 मिलियन डॉलर गिरकर 37.206 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। हालांकि, RBI द्वारा जारी नए आंकड़ों के मुताबिक समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत के विशेष आहरण अधिकार ( SDR- Special Drawing Rights) का मूल्य 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.440 अरब डॉलर हो गया है।
लगातार डॉलर के मजबूत होने से बढ़ रहीं परेशानियां
पिछले कुछ महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आरबीआई के बाजार में बढ़ते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरावाट को थामने के लिए संभवत: हस्तक्षेप करता है। वहीं दूसरी तरफ, आयातित वस्तुओं की बढ़ती लागत ने भी व्यापार निपटान के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की उच्च आवश्यकता को जरूरी बना दिया है, इसलिए भी इसमें गिरावट आ रही है।
अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के स्ट्रॉग होने से भारतीय रूपया पिछले कुछ हफ्तों में काफी कमजोर हुआ है। यहां तक की कमजोर होकर रूपये ने नए सर्वकालिक निचले स्तर को छू लिया है। बीते हफ्ते इतिहास में रूपया पहली बार डॉलर के मुकाबले 83 रूपये के स्तर को पार कर गया था। इस वर्ष रूपये में करीब 10-12 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है।
आमतौर पर भारतीय रिजर्व बैंक रूपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए, बिक्री सहित तरलता प्रबंधन के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करता है। फरवरी के अंत में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट आ गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और अन्य वस्तुओं का आयात महंगा हो गया था। पिछले 12 महीनों में संचयी आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 115 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।
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