EWS Reservation: सामान्य वर्ग के लिए 10% EWS Reservation प्रदान करने लिए SC पीठ ने 3:2 के अनुपात में संविधान के 103वें संशोधन को बरकरार रखने का फैसला किया है। SC की 5 न्यायाधीशों वाली बेंच में से 3 न्यायाधीश EWS आरक्षण के पक्ष में है, जबकि चीफ जस्टिस और एक न्यायाधीश ने इसपर असहमति जताई है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस बेला त्रिवेदी ने EWS आरक्षण के पक्ष में मुहर लगाई है। वहीं चीफ जस्टिस यूयू ललित और न्यायामूर्ति एस रवींद्र भट ने इस फैसले से असहमति जताई है। गौरतलब है कि SC ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी है।
27 सितंबर को रखा था फैसला सुरक्षित :
दरअसल, EWS कोटे की संवैधानिक वैधता को Supreme Court में चुनौती दी गई थी। इस मामले में कई याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद सर्वोच्चतम न्यायालय ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तत्कालीन CJI बोबड़े, न्यायाधीश आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने 5 अगस्त, 2020 को इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया था।
क्या है पूरा मामला? जानिए
दरअसल, केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग को 10% आरक्षण देने के लिए साल 2019 में संविधान में 103वां संसोधन किया था। इसकी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान करना था, अगर गरीबी आधार है तो इस EWS आरक्षण में ST/SC/OBC को भी जगह मिले। EWS कोटा 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है। याचिका की कई बार सुनवाई करने के बाद पांच जजों की पीठ ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले की मैराथन सुनवाई लगभग 7 दिनों तक चली। इसमें याचिका कर्ताओं और तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने EWS कोटे को लेकर अपनी दलीलें सामने रखीं।
कौन-कौन है EWS Reservation के पक्ष में ?
न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण को बरकरार रखने के पक्ष में फैसला सुनाया। इन्होंने माना की EWS आरक्षण संविधान के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी को समान अवसर प्रदान करने का अवसर है। इन्होंने कहा कि- आरक्षण को लेकर जो संशोधन किया गया है, वो संविधान की मंशा के अनुरूप ही है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की राय – न्यायाधीश माहेश्वरी ने इसके पक्ष में मत देते हुए कहा, ‘हमने समानता का ख्याल रखा है। आर्थिक आधार पर कोटा संविधा की मूल भावना के खिलाफ नहीं है। यह किसी भी तरह से आरक्षण के मूल रूप को नुकसान नहीं पहुंचाता है’। इन्होंने संविधान के 103 वें संसोधन को सही ठहराया है।
जस्टिस बेला त्रिवेदी और पारदीवाला की राय – जस्टिस बेला त्रिवेदी ने जस्टिस माहेश्वरी के निष्कर्ष को सही ठहराया है। उन्होंने कहा कि ST/SC/OBC को पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है। इसलिए उन्हें सामान्य वर्ग के साथ शामिल नहीं किया जा सकता। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सीमित समय के लिए रखने की बात कही थी, लेकिन आज 75 साल बाद भी यह जारी है। वहीं पारदीवाला इसे सही ठहराते हुए कहा- ‘आरक्षण का अंत नहीं है, यह साधन है, इसे निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरक्षण को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए, यह बड़े स्तर पर लोगों को फायदा पहुंचाने का जरिया है। इसलिए मैं EWS Reservation के पक्ष में हूं।
चीफ जस्टिस यूयू ललित और रविंद्र भट ने क्यों जताई असहमति?
चीफ जस्टिस यूयू ललित ने आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले EWS आरक्षण का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि 50% आरक्षण की सीमा पार करना मूल ढ़ांचे के खिलाफ है। वहीं जस्टिस रविंद्र भट भी चीफ जस्टिस ललित की टिप्पणी को सही ठहराया है। उन्होंने कहा – ‘आबादी का एक बड़ा हिस्सा SC/ST/OBC का है, जो कि बहुत गरीब लोग हैं। इसलिए , 103 वां संविधान संसोधन गलत है’। 50% से ऊपर आरक्षण देना ठीक नहीं है, यह संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इसलिए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) रद्द किए जाने चाहिए।
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