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DICCI: क्‍या है DICCI? जिसने दलित उद्यमिता की दिशा में की अहम पहल…

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DICCI

DICCI: दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्‍ड इंडस्‍ट्री (DICCI) ने उद्यमिता को नेतृत्‍व सौंपकर स्‍वावलंबन को बढ़ावा दिया है। इसकी स्‍थापना वर्ष 2005 में तब की गई थी, जबि निजीकरण के चलते अनुसूचित जातियों/जनजातियों के उद्यमियों के समझ जीविका का संकट गहरा रहा था। ऐसे में डिक्‍की ने पहल कर इन उद्यमियों के प्रति सरकारी एवं निजी क्षेत्र भी सकारात्‍मक कार्रवाई के तहत सामाजिक जिम्‍मेदारी को अंजाम देने का काम किया। डिक्‍की के संस्‍थापक मिलिंद कांबले बताते हैं कि, उन्‍हें इसकी प्रेरणा बाबा साहब डॉ. आंबेडकर की आर्थिक शिक्षाओं से मिली। क्‍योंकि SC/ST समाज न तो व्‍यवसायाी वर्ग था और न ही कृषि-वर्ग, लेकिन यह समाज हमेशा से ही निश्चित तौर पर सेवादाता रहा है। 

केंद्र सरकार से मान्‍यता प्राप्‍त है DICCI :

दरअसल, सरकारी सेवाओं में अवसर सीमित होते जा रहे थे। ऐसे में डिक्‍की ने युवाओं में उम्‍मीदें जगाई, केंद्र सरकार ने भी डिक्‍की एवं उसके सहयोगी युवाओं को स्‍टार्ट अप में मदद के लिए हाथ बढ़ाया। केंद्र सरकार ने बैंको निर्देश दिए कि युवा-उद्यमियों को रियायती दर पर ऋण उपलब्‍ध करायें। डिक्‍की ने भी ऐसा उद्यमी वर्ग पैदा करने उद्देश्‍य बनाया, जो सरकार को कर देने में समर्थ हो। स्‍थापित उद्योगपतियों ने भी उनके साथ सकारात्‍मक एवं भरोसेमंद रिश्‍ता बनाया। डिक्‍की अपने स्‍वरोजगार अभियान को टाटा जैसे बड़े उद्योगपतियों के साथ आगे बढ़ा रहा है। DICCI के सदस्‍यों ने इसका अध्‍ययन किया कि कैसे अमेरिका में डायवर्सिटी के तहत आर्थिक क्षेत्रों में अवसर देकर स्‍वयं श्‍वेत-उद्यम समूहों ने अश्‍वेतों की लघ़-उद्यमिता को अवसर देते हुए उनकी ऊर्जा कौशल का रचनात्‍मक उपयोग किया एवं अमेरिका व अफ्रीका में औद्यौगिक क्रांति संपन्‍न हुई। 

विदेशों से शिक्षा प्राप्‍त कर रहे दलित उद्यमी :

हमारे देश में डायवर्सिटी की बात साहित्‍य, संस्‍कृति एवं कला जैसे क्षेत्रों मं तो दबे स्‍तर पर की जाती है। लेकिन Dalit Indian Chamber of Commerce and Industry (DICCI) ने औद्यौगिक क्षेत्र में पहल कर युवाओं को उद्यमिता की कमान सौंपी। इसमें आदिवासी समुदाय से आए दीपक जैसे युवाओं की संघर्ष की प्रेरक कहानी है, इन्‍होंने कई तरह के शहद उत्‍पाद निर्मित करते है। वहीं पुणे स्थित अपनी र्स्‍टाट अप कंपनी स्‍वरा के माध्‍यम से मैत्रेयी कांबले ने स्‍वच्‍छता के कार्यों को घृणित कार्यों की श्रेणी  से बाहर निकाला है। अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में BBA की की पढ़ाई कर चुकी मैत्रेयी का कहना है कि, ”हम यंत्रों-मशीनों की मदद से सफाई के पेशे को इतना आधुनिक और आकर्षक बना रहे हैं कि, इसे करते वक्‍त कोई भी अपने आप को उपेक्षित महसूस न करें, और एक दिन यह पेशा वंशानुगत भी नहीं रहेगा”।

युवतियां भी कर रही कुशल नेतृत्‍व :

 इस प्रकार से DICCI के सैकड़ों लघु-उद्योग-धंधे देश और विदेशों में चल रहे हैं। लड़कियां भी उद्यमिता की चुनौती का सामना कर कुशल नेतृत्‍व कर रही हैं। अमेरिका, कनाडा, जापान और इंग्‍लैंड से शिक्षा प्राप्‍त कर आ रहे SC/ST के युवा केंद्र सरकार के प्रोत्‍साहन पर डिक्‍की की ओर आकर्षित हो अपने स्‍टार्ट अप शुरू कर रहे हैं। SC/ST युगो-युगों से सेवा देने वाले समुदाय रहे हैं, इसलिए सेवा क्षेत्र विकसित करना डिक्‍की परिवार का स्‍वा‍भाविक गुण है। दीपक, मैत्रेयी और संतोष जैसे युवाओं के नक्‍शे कदम पर चल रहे आयुष सिंह भी अपनी अच्‍छी खासी सेवाएं दे रहे हैं। वे पुरानी गाडियों को उपयोगी ‘मैपल पोड’ में बदलने का कार्य कर रहे हैं। 

दलित उद्यमियों की 15 प्रेरणादायक कहानियां :

DICCI की स्‍थापना के बाद उसकी 7 वर्षों की सफलता का मूल्‍यांकन करते हुए वर्ष 2012 में पत्रकार मिलिंद खांडेकर ने दलित करोडपतियों की ‘15 प्रेरणादायक कहानियां’ शीर्षक नाम से एक किताब लिखी। इन उद्यमियों में कल्‍पना सरोज नामक एक महिला उद्यमी शिखर पर उभरी थीं। वहीं सविता बेन कोलसावाला कोयले का कारोबार कर गुजरात में प्रसिध्‍द हुई थीं। उन 15 करोड़पतियों की उद्यमिता से 15,000 हाथों को काम मिला था। इस समाज के उद्यमियों के मार्ग में जातिभेद आड़े आता है। बैंकों से ऋण मिलने, कच्‍चा माल मिलने में दलितों को दिक्‍कतें आती हैं। लेकिन डिक्की 2005-2012 के बीच की अवधि में सरकार को 17 करोड़ रुपये का आयकर चुकाने लगा था  एवं 5,000 लोगों को रोजगार देने लगा था।

दिल्‍ली में लगा था प्रशि‍क्षण शिविर :

हाल ही में विगत 4 जनवरी को दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में DICCI ने अपने प्रशिक्षण शिविर में उद्यम क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियों के साथ विचार-विमर्श किया। इस मोके पर सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री के समक्ष उद्यमियों ने अपने विचार रखे। 

डिक्‍की के दलित उद्यमियों ने बाजार की कई नकारात्मक धारणाएं एवं कई आशंकाएं उलट कर रख दी हैं। मसलन, हम पूंजी-बाजार के खुलेपन की सकारात्मकता को ले सकते हैं। इससे उत्पादन को सामाजिक गैर बराबरी के जाल से बाहर निकाला गया है। अब कहा जा सकता है 17 साल का यह किशोर संगठन आर्थिक आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चलता-चलता अपनी प्रौढावस्था को प्राप्त कर रहा है। साथ ही विदेशों के उच्च संस्थाओं से पढ़कर आ रहे उद्यमियों को आकर्षित कर रहा है। ये उद्यमी अपनी प्रतिभा, ज्ञान एव ऊर्जा का निवेश अपने देश के विकास में भी कर रहे हैं।­

 

 

Kusum
I am a Hindi content writer.

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