CJI DY Chandrachud: यूयू ललित के बाद अब देश के नए CJI DY Chandrachud सर्वोच्चतम न्यायालय का नेतृत्व करेंगे। उन्होंने आज देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की है। वह 10 नवंबर 2024 तक इस पद पर बनें रहेंगे। आज सुबह राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने उन्हें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। उन्होंने सेवानिवृत हुए यूयू ललित की जगह ली है। इससे पहले 6 नवंबर को CJI उदय उमेश ललित को औपचारिक समारोह बेंच गठित कर विदाई दी गई है। वर्तमान में SC के सबसे सीनियर जस्टिस DY चंद्रचूर्ण सर्वोच्चतम न्यायालय के पवित्र गलियारों को बेहद करीब से जानते हैं।
चंद्रचूड़ कब पहुंचे सर्वोच्चतम न्यायालय ?
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। DY चंद्रचूर्ण कई संविधान पीठ और ऐतिहासिक फैसले देने वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठों का हिस्सा रहे हैं। इनमें अयोध्या भूमि विवाद, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमाला मुद्दा, IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने में, सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने जैसे मुद्दों से जुड़े फैसले शामिल हैं। इनकी शिक्षा की बात करें तो, इन्होंने अर्थशास्त्र में B.A ऑनर्स करने के बाद DU से LLB किया। उसके बाद इन्होंने अमेरिका के howard law school से LLM और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
पिता भी रहे 16वें CJI : रिकॉर्ड
वर्तमान CJI DY Chandrachud के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे चुके हैं। YV चंद्रचूड़ ने देश के 16वें CJI के रूप में 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 के बीच 7 सालों तक कार्यभार संभाला था। यह किसी भी CJI का अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल हैं, जो आज भी एक रिकॉर्ड है। पिता के सेवानिवृत्त होने के 37 साल बाद उनके बेटे DY चंद्रचूर्ण CJI बनें हैं। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह भी पहला मौका है जब पिता के बाद उसका बेटा भी CJI सीजेआई बना है।
पलट चुके हैं पिता का ही फैसला
न्यायमूर्ति DY चंद्रचूर्ण कई एतिहासिक फैसलों की पीठ का हिस्सा रहे हैं। इन्हीं में से साल 2018 में वैवाहेतर संबंधो (व्याभिचार कानून) को खारिज करने वाले फैसले में भी शामिल रहे थे। साल 1985 के तत्कालीन CJI यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भादंवि की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए बहलाने वाला पुरूष होता है न कि महिला।
वहीं, CJI DY Chandrachud साल 2018 के फैसले में 497 को खारिज करते हए कहा था कि, ‘व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर प्रतीत होता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है’। वैवाहिक संबंधों में पति-पत्नि दोनों की जिम्मेदारी बराबर है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे। व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है। क्योंकि यह विवाहित पुरूष एवं विवाहित महिला के लिए अलग-अलग बर्ताव करता है।
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