Caste Census: सर्वोच्चतम न्यायालय आज बिहार में चल रहे जातीय और आर्थिक जनगणना मामले में सुनवाई करेगा। हिंदू सेना ने बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने जातिगत जनगणना (Caste Census)पर रोक लगाने की मांग की थी। दरअसल, बिहार समेत देश के कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग की जा रही है। साल 2011 में जब जनगणना हुई थी, तब भी जातीय आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई थी। हालांकि, इसे जारी नहीं किया गया था। बिहार से पहले भी राजस्थान और कर्नाटक में जातीय जनगणना हो चुकी है। अब बिहार में भी शुरू हुई है, लेकिन शुरूआत में ही मामले ने कोर्ट की शरण पकड़ ली है।
तो चलिए ऐसे में जानते है कि, जनगणना होती कैसे है और कैसे पता चलता है कि किस जाति के कितने लोग हैं? मकानों की गिनती कैसे होगी?
आखिर क्यों हो रही है जातीय जनगणना ?
आपको बता दें कि, बिहार के राजनीतिक दल लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे, दलित, पिछड़ों की सही जनसंख्या पता चलेगी और उन्हें इसके अनुसार ही आगे बढ़ाया जा सकेगा। Caste Census के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी। बिहार विधानसभा और विधान परिषद में 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगण्ना कराने के संबंध में प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे भाजपा, जदयू, राजद समेत सभी दलों का समर्थन मिल गया था।
जबकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी। केंद्र सरकार ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनाम दायर कर कहा था कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जातीय जनगणना करना लंबा और कठिन काम है। लेकिन, इसके बावजूद भी नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया था। बिहार सरकार ने मई 2023 तक यह काम पूरा करने का दावा किया है।
प्रथम चरण: कैसे होगी मकानों की गिनती ?
इस कठिन कार्य के पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती शुरू की गई है। इसकी शुरूआत पटना के VIP इलाकों से की गई है। राज्य सरकार की तरफ से अभी तक मकानों को कोई नंबर नहीं दिया गया है। हालत ये है कि वोटर आईकार्ड में अलग और निगम के होल्डिंग में अलग नंबर दिए गये हैं। पंचायत स्तर पर मकानों को अभी तक नंबरिंग नहीं की जा सकी है। शहरी क्षेत्र में कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसाइटी की ओर से दी गई है, न कि सरार की ओर से। अब मकानों की गिनती कर सरकारी स्तर पर मकान नंबर आवंटित किए जाएंगे। इस चरण में सभी मकानों को स्थाई नंबर दिया जाएगा।
द्वितीय चरण: कैसे होगी आर्थिक व जातीय जनगणना ?
प्रथम चरण के बाद इसके द्वितीय चरण की शुरूआत होगी, जिसके तहत जातीय और आर्थिक जनगणना का काम शुरू किया जाएगा। इसमें लोगों के शिक्षा स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गाड़ी, मोबाइल, गैजेट्स, नॉन-गैजेट्स) किस काम में दक्षता है, आय के स्त्रोत एवं आय के अन्य साधन, परिवार में कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उपजाति, उप की उपजाति, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल, गांव में जातियों की संख्या इत्यादि सवाल पूछें जाएंगे।
इससे संबंधित अन्य तथ्य :
- जनगणना का कार्य जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत किया जाता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना ‘संघ’ का विषय है।
- यह संविधान की 7वीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है।
- इस अधिनियम को बनाने हेतु भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा विधेयक पेश किया गया था।
आपको बता दें कि स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में जनगणना हुई थी। भारत में पहली बार वर्ष 1872 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासन काल के दौरान आयोजित की गई थी। जातीय और आर्थिक जनगणना कराने की कार्यभार बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा गया है। प्रत्येक जिला प्रशासनिक अधिकारी (कलेक्टर) को इसका नोडल पदाधिकारी नियुक्त किया जाता है। जातीय जनगणना कराने के लिए लगभग 500 करोड़ के खर्च की अनुमानित लागत रखी गई।
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