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सीता-रामम फिल्‍म रिव्‍यू : धार्मिक कट्टरता का नकाब नोचती, परियों सी राजकुमारी की मनमोहक प्रेम कहानी

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सार

‘Seeta-Ramam’ तेलुगू में बनी एक फिल्‍म मूवी है जिसको हिंदी में हाल ही में रिलीज किया गया है। यह फिल्‍म यदि हिंदी में ही बनी होती तो अब तक जमकर ट्रोल हो चुकी होती एवं इसे बॉयकॉट किए जाने का ट्रेंड जारी होता। यह फिल्‍म ‘धार्मिक कट्टरता’ को दरकिनार कर ‘मानवता’ को ही सर्वश्रेष्ठ धर्म मानने की सीख देती है । जिसमें राम का किरदार दुलकर सलमान ने एवं सीता का किरदार मृणाल ठाकुर ने निभाया है ।

 

विस्‍तार :

Seeta-Ramam Movie Review :  भारत-पाकिस्‍तान के बीच पनपती नफरत के दौर में फिल्‍म ‘सीता-रामम’ एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसे कहा जाना बहुत जरूरी है। यह फिल्‍म काबिल-ए-तारीफ है जो सीता और राम की आदर्श महागाथा के तार नये सिरे से छेड़ती है। मलयालम सिनेमा के सुपरस्‍टार ममूटी के बेटे दुलकर सलमान के किरदार का नाम अगर किसी मूल हिंदी फिल्‍म में राम होता तो सोचिए ट्रोल ब्रिगेड उनका अब तक क्‍या हाल करते ?    और ये भी कि एक मुस्लिम किरदार अगर मंदिर में पुजारी को प्रणाम करता और उसके कपाल पर रोली का टीका लगाते दिखाया गया होता तो क्‍या होता ?   शिक्षा पाना एवं उसको असल जिंदगी में अमल करना, यही उत्‍तर एवं दक्षिण भारत का फर्क है। जहां शिक्षितों का प्रतिशत ज्‍यादा है वहां पर लोग न सिर्फ प्रगतिशील हैं बल्कि सिनेमा तथा असल जिंदगी का फर्क भी ठीक से समझते है।

क्‍यों हो रही है ‘सीता-रामम’ फिल्‍म की तारीफ ?

भारत-पाक युध्‍द 1971 के सात वर्ष पहले‍ ‘सीता-रामम’ कहानी की शुरूआत होती है। इस फिल्‍म में उस सूत्र को तलाशने की कोशिश की गई है जिसके चलते कश्‍मीरियों ने भारतीय फौजियों को अपना दुश्‍मन समझ लिया था। कारगिर में ठंड से ठिठुरते जवानों के लिए रसद लेकर आते स्‍थानीय भी तब आतंकवादी से दिखते है। सवाल नजरिये का है। नजरिया ही फिल्‍म ‘सीता-रामम’ का असल DNA है। धार्मिक कट्टरता के बीच लिखी गई एक मोहक प्रेम कहानी में धर्म का असली मर्म है, ”परहित सरिस धरम नहिं कोई” । जब एक फौजी अपने सपनों की दुनिया बसाने के लिए एकत्रित की गई अपनी सारी बचत, वेश्‍यालय में मिली अपनी मुंहबोली बहन और उसकी सभी संगिनियों को आजाद कराने में खर्च कर देता है तो समझ आता है कि धर्म का असली मतलब क्‍या होता है।

 

क्‍यों देखना जरूरी है ‘सीता-रामम’ फिल्‍म ?

निर्देशक हनु राघवपुडी ने फिल्‍म ‘सीता-रामम’ को वैसे ही कैनवस पर बनाया है जैसे कभी मणिरत्‍नम ने ‘रोजा’ बनाई थी। हैदराबाद से कश्‍मीर तक विस्‍तारित फिल्‍म ‘सीता-रामम’ की कहानी आंखे खोल देने वाली है। भले ही यह उत्‍तर भारत के लोगों को रास न आये, लेकिन ऐसी ही सोंच एवं ऐसी फिल्‍मों की जरूरत हमें खुद एवं हमारी नई पीढ़ी को है। जिसमें इंसानियत को हर धर्म से आगे रखने की बात  कदम-कदम पर सिखाई गई हो। इस फिल्‍म के सभी कलाकारों एवं खास कर इसके निर्देशक हनुराघवपुडी की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्‍होंने ऐसी कहानी पर एक बेहतर फिल्‍म बनाने में सफलता प्राप्‍त की।

 

सीतालक्ष्‍मी कौन है ?

‘सीता-रामम’  फिल्‍म दो कालखंडों में एक साथ चलती है। एक तरफ 1964 में शुरू प्रेम कहानी जिसमें रेडियो पर एक एकाकी लेफ्निेंट राम की शूर वीरता की कहानी सुनकर देश भर के लोग उसे चिट्ठियां लिखने लगते है। इन्‍ही मेंसे से एक चिट्ठी सीतालक्ष्‍मी की होती है जो राम को अपना पति मानती है और राम अपनी सीता को खोजने निकलता है।

दूसरी तरफ 1984 में एक कहानी शुरू होती है जिसमें लंदन में पढ़ी एक पाकिस्‍तानी  युवती अपने बाबा की अंतिम पूरी करने भारत आती है। उसके पास एक चिट्ठी है जो उसे सीतालक्ष्‍मी को देनी होती है, लेकिन सीतालक्ष्‍मी असल में कौन है इसका खुलासा होते ही फिल्‍म का पूरा ग्राफ ही बदल जाता है। यह कहानी समाज, दस्‍तूरों एवं परिवार की तंग गलियों से होकर गुजरती है।

 

दुलकर और मृणाल की केमेस्‍टरी :

 

फिल्‍म ‘सीता-रामम’ में मलयालम सिनेमा के सुपरस्‍टार अभिनेता दुलकर सलमान और मराठी, हिंदी सिनेमा की काबिल अभिनेत्री मृणाल ठाकुर की केमेस्‍टरी देखकर लगता है कि इससे बेहतर अदाकारी भला और कौन कर सकता है। दोनों ने बेहतरीन किरदार निभाया है। अच्‍छा हुआ कि यह फिल्‍म हिंदी में डब होकर रिलीज की गई। नहीं तो अब तक धार्मिक कट्टरता के कारण इस नंबर 01 जोड़ी का बॉयकॉट कर दिया गया होता।

 

Kusum
I am a Hindi content writer.

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