आर्थिक संकट :
हाल ही में जारी IIF की रिपोर्ट के अनुसार, उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में आर्थिक संकट मंड़रा रहा है। कर्ज की मात्रा उनके GDP की तुलना में लगभग 252.4% हो गई है। जबकि साल भर पहले यह आंकडा 250.2% था। भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान एवं श्रीलंका के बाद अब बंग्लादेश में भी आर्थिक संकट का खराता मंड़रा रहा है। विश्व में बढ़ रही मंहगाई के कारण एशिया के उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों पर आर्थिक संकट के बादल छाये हुए है। एशियन देशों में लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। एवं सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस (IIF) एक अमेरिकी संस्था है।
आर्थिक संकटापन्न में शामिल देश कौन-कौन से है ?
जुलाई 2022 में मिले आंकड़ों के अनुसार, अबतक पाकिस्तान 5194 मिलियन डॉलर, श्रीलंका 600 मिलियन डॉलर तो वहीं बांग्लादेश विदेशी मुद्रा भंडार से 762 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया है।
IIF की जारी रिपार्ट के मुताबिक, सिंगापुर सरकार पर अब कर्ज उसकी GDP की तुलना में 176.2 प्रतिशत हो गया है। तो वहीं चीन में 76.2 प्रतिशत के लगभग हो गया है। वियतनाम की कंपनियों पर कर्ज की मात्रा वहां की GDP का 107.9 फीसदी हो गया है। इन सभी देशों के कर्ज में लगातार वृद्धि एवं GDP में लगातार तेजी से गिरावट के कारण ही आर्थिक संकट छाया हुआ है।
कैसे उत्पन्न हुआ आर्थिक संकट ?
महंगाई आर्थिक संकट का प्रभावी कारक :
IIF के मुताबिक अगर पूरे विश्व को गौर करें तो पाएंगें की मंहगाई का इस आर्थिक संकट से सीधा संबंध है। अप्रैल-जून की तिमाही में सार्वजनिक और निजी कर्ज GDP की तुलना में 349 प्रतिशत तक पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों पर कर्ज के बोझ में तेज गति से बढ़ोत्तरी वहां के आर्थिक संकट का मुख्य कारण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, खास कर चीन और यूरोप की GDP में गिरावट, ऊर्जा एवं खाद्य पदार्थों की मंहगाई के कारण बढ़ रहे सामाजिक तनाव से चिंता बढ़ रही है। इस स्थिति में संभव है कि सरकारें और ज्यादा कर्ज लेंगी। उघोग संगठनों ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष के अंत तक GDP की तुलना में कर्ज 352 फीसदी तक पहुंच जायेगा।
डॉलर में लगातार वृद्धि :
अमेरिकी मुद्रा डॉलर की कीमतों में लगातार वृद्धि के कारण उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए कर्ज लेना और मुश्किल होता जा रहा है। इस साल जनवरी से जून तक ऐसे देश सिर्फ 60 बिलियन डॉलर के बॉन्ड की बेंच पाये। जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 105 बिलियन डॉलर का था।
वेबसाइट एशिया टाइम्स की रिपोर्ट ने बताया है कि, एशियाई देशों के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। भारत सहित मलेशिया, थाईलैंड जैसे देशों में विदेशी मुद्रा भंडार गुजरे महीनों में सबसे तेज रफ्तार से घटा है। अर्थशास्त्री दिव्या देवेश ने एशिया टाइम्स को बताया कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले एशियाई देशों का विदेशी मुद्रा भंड़ार 2008 की आर्थिक मंदी के बाद आज सबसे कमजोर स्थिति में है।
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